जंगल को जो अपना कहते हैं
ये कैसी विडम्बना है?
वो राष्ट्र को नहीं मानते।
पत्थर -पहाड़, पेड़
नदियाँ, सूर्य को अपना कह
पूजते हैं
पर ये कैसी बिडम्बना है?
राष्ट्र को बस भूगोल
भूगोलिक – सरंचना
और कुछ नहीं मानते।
परमीत सिंह धुरंधर
जंगल को जो अपना कहते हैं
ये कैसी विडम्बना है?
वो राष्ट्र को नहीं मानते।
पत्थर -पहाड़, पेड़
नदियाँ, सूर्य को अपना कह
पूजते हैं
पर ये कैसी बिडम्बना है?
राष्ट्र को बस भूगोल
भूगोलिक – सरंचना
और कुछ नहीं मानते।
परमीत सिंह धुरंधर
हे शिव
आप पिता हो मेरे
इतना ही काफी है
आपकी पूजा के लिए.
आप योगी, निश्चल-निश्छल
चराचर में सम्माहित
महाकाल हो
इतना ही काफी है
आपकी बन्दना के लिए.
परमीत सिंह धुरंधर
इन आँखों का असर देख साकी
पी मैं रहा हूँ, झूम तू रही है.
अंग ये पुष्प से, खिल उठे हैं धुप में
ऐसी क्या बात है गोरी, तू छुप रही है शर्म से.
तू कहे तो रंग दूँ, आज तुझे अपने रंग में
फिर नहीं आएगा ये मौसम किसी सर्द में.
विचारधारा अलग-अलग है
पर हम एक हैं, हिन्दोस्तान हमारा है.
परमीत सिंह धुरंधर
इ रहली छपरा के, उ रहली सिवान के
दुनो के रंगनी बीच महराजगंज – बाजार में.
जोगीरा सारा रारा, जोगीरा सारा रारा।
इ के बाप थानेदार, उ के बाबू जी तहसीलदार
दुनो के मिलल बा बकलोल भतार।
जोगीरा सारा रारा, जोगीरा सारा रारा।
इ मिले गाछी में, उ मिले बथानी
इ कहे हमके राजा, उ कहे स्वामी।
जोगीरा सारा रारा, जोगीरा सारा रारा।
इ कहस माई – माई, उ कहस ताई – ताई
जब डालनी रंग पकड़ के कलाई।
जोगीरा सारा रारा, जोगीरा सारा रारा।
इ कहस छोड़ दे, उ कहस अब रहे दे
हम कहनी तानी अउरी लहे दे.
जोगीरा सारा रारा, जोगीरा सारा रारा।
इ लगली गलियाये, उ लगली छटपटाये
जब चोली दुनो के लगनी भिंगाये।
जोगीरा सारा रारा, जोगीरा सारा रारा।
इ चाटे चटनी, उ चखे चोखा
देख के पाकल कटहल, खाये लागली कोवा।
जोगीरा सारा रारा, जोगीरा सारा रारा।
परमीत सिंह धुरंधर
चौहानों का इतिहास हम फिर से लिखेंगे
हम नहीं चुनेंगे उन्हें, वो हमें चुनेंगें।
पिता के सामने जो पति मान ले
उस वीरांगना का सुहाग बन हम चमकेंगे।
परमीत सिंह धुरंधर
ई रहली ई -घाट, ऊ रहली उ -घाट
दुनो के छेद दिहनि एके तीर में, अइसन हम तीरंदाज।
जोगीरा सारा रारा, जोगीरा सारा रारा।
खाजा खिलाइनि, खजुली खिलाइनि, खिलाइनि सारा मिष्ठान,
जब तक कटहल ना खइली, ना भइली ु शांत।
जोगीरा सारा रारा, जोगीरा सारा रारा।
सालभर भौजी रहेली बीमार
आइल फागुन, चोली कास के होगइली तैयार।
जोगीरा सारा रारा, जोगीरा सारा रारा।
आरा के लोग, बलिया के लोग, अरे छपरा के लोग
देख ताहार जवानी, सबके लागल बा इश्क़ के रोग.
जोगीरा सारा रारा, जोगीरा सारा रारा।
माई-बाप दुनू रखत नइखे लोग बेटा के नाम
की पंडित जी बतईले बारन नाम, अरविन्द केजरीवाल।
जोगीरा सारा रारा, जोगीरा सारा रारा।
परमीत सिंह धुरंधर
दिल्ली में जीत गयी फिर से आप
कलयुग में एक मात्रा सहारा, हनुमान जी का नाम.
जोगीरा सारा रारा, जोगीरा सारा रारा।
परमीत सिंह धुरंधर
सर्वधर्म समभाव हो यारो
सर्वधर्म समभाव।
किसी के दर्द पे ना कोई हँसता हो
ऐसा हो मनभाव।
सबके हाथ में कलम हो
सब बढ़ाएं देश का मान.
सर्वधर्म समभाव हो यारो
सर्वधर्म समभाव।
प्रेम -धारा जहाँ बहे निरंतर
ना द्वेष का हो स्थान।
सर्वधर्म समभाव हो यारो
सर्वधर्म समभाव।
बुझ जाए जहाँ बिरहा की आग
ऐसा हो कोई एक पड़ाव।
सर्वधर्म समभाव हो यारो
सर्वधर्म समभाव।
अपना बिहार है सबका बिहार
चाहे हिन्दू हो या मुसलमान।
सर्वधर्म समभाव हो यारो
सर्वधर्म समभाव।
परमीत सिंह धुरंधर
हम ना हिन्दू, ना मुस्लिम
ना हम सिक्ख ना हम ईसाई रे.
हम हैं बिहारी रे बंधू
बिहार अपनी बूढी माई रे.
छपरा जिसका ह्रदय
जहाँ बहती है पुरवाई रे.
और गंगा जिस धरती पे
लेती है, बलखा – बलखा अंगराई रे.
हम जाए चाहे जहाँ
यादों में बस उसकी ही परछाई रे.
सारी दुनिया घूम ले हम चाहे
चाहे जितनी भी हो कमाई रे.
खाते हैं हम लिट्टी-चोखा
डाल के उसपे मलाई रे.
हम हैं बिहारी रे बंधू
बिहार अपनी बूढी माई रे.
परमीत सिंह धुरंधर
धुप में ना निकलो, यूँ हजार रंग ले कर
तड़पती है दुनिया दोपहर में जल-जल कर.
सबकी निगाहें प्यास में डूबीं हैं
उसपे ऐसे न तडपावों तुन यूँ घूँघट में छुप-छुप कर.
मन है व्याकुल, जाए तो जाए किधर
भटकावों ना तुम हमें यूँ राहें बदल-बदल कर.
परमीत सिंह धुरंधर