वो आज भी देखती हैं,
मुझे आँखों से,
एक टकटकी लगा के.
घर है, दौलत है,
बच्चे हैं,
फिर भी जाने क्या,
रख्खा है मुझसे,
एक आस लगा के.
वो आज भी देखती हैं,
मुझे आँखों से,
एक टकटकी लगा के.
जवानी है, खूबसूरती है,
शोहरत है,
फिर भी जाने क्या,
रख्खा है खामोस निगाहों में,
मुझसे उम्मीद लगा के.
वो आज भी देखती हैं,
मुझे आँखों से,
एक टकटकी लगा के.
पति है, पैसा है,
पुरस्कार है,
फिर भी जाने क्या,
मुझसे चाहती हैं,
मेरा सब कुछ मिटा के.
वो आज भी देखती हैं,
मुझे आँखों से,
एक टकटकी लगा के.
परमीत सिंह धुरंधर