वो आज भी देखती हैं


वो आज भी देखती हैं,
मुझे आँखों से,
एक टकटकी लगा के.
घर है, दौलत है,
बच्चे हैं,
फिर भी जाने क्या,
रख्खा है मुझसे,
एक आस लगा के.
वो आज भी देखती हैं,
मुझे आँखों से,
एक टकटकी लगा के.
जवानी है, खूबसूरती है,
शोहरत है,
फिर भी जाने क्या,
रख्खा है खामोस निगाहों में,
मुझसे उम्मीद लगा के.
वो आज भी देखती हैं,
मुझे आँखों से,
एक टकटकी लगा के.
पति है, पैसा है,
पुरस्कार है,
फिर भी जाने क्या,
मुझसे चाहती हैं,
मेरा सब कुछ मिटा के.
वो आज भी देखती हैं,
मुझे आँखों से,
एक टकटकी लगा के.

 

परमीत सिंह धुरंधर

हुस्न और कुत्ता


एक भीड़ सी लगी है कुत्तों की,
और हुस्न वाले कहते हैं,
की पुरुष में अहंकार बहुत है.
सब – कुछ रख दिया है उनकी चरणों में,
लात खा कर भी वही पड़े हैं,
और हुस्न वाले कहते हैं,
की पुरुष में अहंकार बहुत है.
सबसे बड़ी अहिषुण्ता, दोगलापन है ये,
नारी ही उजाड़ रही है घर नारी का,
और हुस्न वाले कहते हैं,
की पुरुष को जिस्म की भूख बहुत है.

 

परमीत सिंह धुरंधर

माँ का इरादा है


माँ का इरादा है,
की मुझको सवारें।
माँ का इरादा है,
की मुझको खिलाये।
माँ की आँखों की,
बस ज्योति मैं ही हूँ.
माँ ने अपनी आँखों का टीका,
बस मुझको ही लगाया है.
फिर कैसे तेरे योवन पे,
अपनी माँ को भुला दूँ.
माँ ने,
मेरे लिए चुल्ल्हा जलाया है,
माँ ने मेरे लिए,
रात के तीन बजे पुआ पकाया है.
अपनी हाथों को जलाकर,
मुस्कराकर, माँ ने मुझे,
भर पेट खिलाया है।
फिर कैसे तेरे अंगों पे,
माँ के छाले भुला दूँ.
ए हुस्न,
मेरी हसरत नहीं,
तुझको पाने की.
वो नासमझ थे,
जिन्होंने तेरी मोहब्बत में,
आसूं  बहाएं।
मैं उन सितारों में नहीं,
जो अंधेरों में छोड़कर माँ को,
बस तेरा आँचल सजाए।

 

परमीत सिंह धुरंधर

Java


ए Java तेरी चाहत में हमने,
रातों की नींदे उड़ा दी.
मेरे महबूब ने थामा किसी और को,
हमने आँखे Terminal में गड़ा दी.
Compiler इतने Error दे रहा है,
दिल की बेचैनी बढ़ती जा रही.
ए Java तेरी चाहत में हमने,
खाना – पीना सब छोड़ दिया है,
मेरे महबूब ने तोडा है दिल मेरा,
अब तू तो वफ़ा दिखा दे.

 

परमीत सिंह धुरंधर

मैं मलखान बन गया


की तू जब से हुई जवान,
मैं मलखान बन गया.
ज्यों -ज्यों ढलका आँचल,
मैं मस्तान बन गया.
चोली – चुनर, सब एक – एक,
करके बिछड़ने लगे.
बदलते आँखों के तेरे रंग पे,
मैं सुलतान बन गया.
काली राते भी चमक उठीं,
अंगों के तेरे चमक पे.
सीने से तेरे लग के,
मैं आज धनवान बन गया.

 

परमीत सिंह धुरंधर

माँ


भगवान गणेश जी, भगवान श्री कृष्णा जी और भगवान हनुमान जी, सभी महान बने क्यों की उनका बचपन बस माँ और उनके हाथों से बने खाने को खाने में गुजरा। माँ के हाथ और उसके हाथ से बने खाने की महिमा इसी से समझी जा सकती है.

 

परमीत सिंह धुरंधर

की जब तक हैं गुरु गोबिंद सिंह जी


भारत को जीत कर भी,
तुम कभी जीत नहीं पाओगे।
हम राजपूतों – जाट -मराठों को,
तुम कभी बाँध नहीं पाओगे।
तुम चाहे तोप बरसा लो,
या हमपे हाथी दौड़ा लो.
रणभूमि में तुम हमें,
कभी पछाड़ नहीं पाओगे।
तानसेन के छंदों पे,
जितना भी वीर बनले अकबर।
राणा की बरछी का,
सामना नहीं कर पाओगे।
सुन लो ए मुगलों,
चाहे भाइयों को भाई से लड़ा लो.
मगर कभी अकबर को ना,
रणभूमि में उतार पाओगे।
हम हारकर भी, झुक जाए,
मिट जाए, अगर किसी दिन.
पर सिक्खों की बस्ती में,
तुम लोहा ना उठा पाओगे।
की जब तक हैं गुरु गोबिंद सिंह जी,
ए मुगलों,
तुम कभी भारत न जीत पाओगे।

 

परमीत सिंह धुरंधर

मोहब्बत:सौ जिस्म को पाने की एक होड़ है


मोहब्बत अब वो महब्बत नहीं,
बस शिकवा-शिकायत है.
सौ जिस्म को पाने की,
बस एक होड़ है.
नारी सौ दहलीज को लांघ कर भी,
जहाँ शर्म से अब भी बंधी है,
ऐसे असंख्य झूठे कहानियों की,
एक किताब है.
झूठे आंसू, झूठे वादे,
झूठे अदाओं से भरपूर,
बेवफाओं की एक दास्ताँ है.

 

परमीत सिंह धुरंधर

छोट पड़ल खटिया


हमरा से कहअ सैयां, जियरा के बतिया,
केने – केने धोती खुलल, आ केने कटल रतिया।
मत पूछह रानी, लिखल रहल यह देहिया के दुर्गतिया,
अंग – अंग टूटे लागल, जब छोट पड़ल खटिया।
भुइंया काहें ना पसर गइल अ, मीठ मिलित निंदिया,
अइसन का रहल की ना छुटल तहरा से खटिया।
मत पूछ ह रानी, कइसन निक रहल खटिया,
देहिया के गिरते ही धड़ लेहलख निंदिया।

परमीत सिंह धुरंधर