दिया वो ही बुझाते हैं,
जो शर्म का ढिढोंरा पीटते हैं.
जहाँ जमाना चुप हो जाता है,
हम वहाँ अपनी आवाज उठाते हैं.
परमीत सिंह धुरंधर
दिया वो ही बुझाते हैं,
जो शर्म का ढिढोंरा पीटते हैं.
जहाँ जमाना चुप हो जाता है,
हम वहाँ अपनी आवाज उठाते हैं.
परमीत सिंह धुरंधर
हर पल में बेचैनी है जिसके,
हर नींद में एक ही चाह,
एक बार सामना तो हो जिंदगी,
मैं रोक दूंगा अर्जुन की हर राह.
ना माँ की दुआएं हैं, न प्रियेसी की प्रीत,
न किसी से आशा है, न किसी का आशीष,
बस एक बार सामना तो हो जिंदगी,
मैं रोक दूंगा अर्जुन की हर जीत.
परमीत सिंह ‘धुरंधर’
राते जितनी काली हो,
नशा उतना ही आता है मुझे,
दर्द जितना गहरा हो,
जीने में उतना ही मज़ा है मुझे।
सौ बार लड़ूंगा,
हल्दीघाटी की लड़ाई,
लड़ने में मज़ा आता है मुझे।
दिल्ली की रौनक मुबारक हो तुम्हे,
मेवाड़ की शान भाती है मुझे।
मैं राजपूत हूँ, कोई मुग़ल नहीं,
योवन की हर धारा तेरे लिए है,
माँ की गोद लुभाती है मुझे।
सौ बार लड़ूंगा,
हल्दीघाटी की लड़ाई,
लड़ने में मज़ा आता है मुझे।
परमीत सिंह ‘धुरंधर’
वो रंग नहीं आसमान पे,
जो मुझको फीका कर दे.
वो फूल नहीं इस गुलशन में,
जो मुझको दीवाना कर दे.
बदला है हमने,
हवावों के रुख को,
कई बार इस समंदर में.
वो धार नहीं इन लहरो में,
जो किनारों को मेरे,
डूबा दे, परमीत.
बजने लगे हैं नागाड़े,
छाने लगीं हैं फिर बहारें,
आवों मिला कर हाँथों-से-हाँथ,
लिख दें हम-तुम,
आसमां पे अपने इरादें, परमीत
आवारा बन जा दिल,
नकारा बन जा दिल,
हर इल्जाम ले ले तू,
हंस-हंस के सीने पे.
पर अपने माँ का,
दुलारा बन के दिल,
दुलारा बन के दिल.
टूट रहे हैं ख्वाब,
हर एक पल में,
टूट जाने दे उन्हें.
छूट रहे है साथ,
हर एक का जीवन में,
छूट जाने दे उन्हें.
लुटेरा बन जा दिल,
बंजारा बन जा दिल,
हर पाप तू कर ले,
इन हाथों से अपने.
पर अपने माँ का,
सहारा बन के दिल,
दुलारा बन के दिल, परमीत.