इश्क़ में ईद हम भी मना ले,
कभी कोई चाँद तो निकले।
होली में रंग तो सभी,
खेल लेते है चेहरा छुपाके।
इश्क़ में दिवाली हम भी मना ले,
कोई एक दिया तो जलाये आँगन में.
परमीत सिंह धुरंधर
इश्क़ में ईद हम भी मना ले,
कभी कोई चाँद तो निकले।
होली में रंग तो सभी,
खेल लेते है चेहरा छुपाके।
इश्क़ में दिवाली हम भी मना ले,
कोई एक दिया तो जलाये आँगन में.
परमीत सिंह धुरंधर
मत पूछ मेरे मालिक, ईद कैसी रही.
शाम को मिलें, और सुबह का पता न चला.
होंठों पे ऐसी मिठास थी,
की हलक से पानी भी नीचे न गया.
मत पूछ मेरे मालिक, ईद कैसी रही.
मेरी निगाहें तो तटस्थ थीं, मगर सारी रात,
जंग उनके चोली और दुप्पटे में चला.
परमीत सिंह धुरंधर
मत पूछो मालिक,
ईद कैसी रही.
उनके ओठों पे थी सेवइयां,
मेरे सीने में आग जलती रही.
परमीत सिंह धुरंधर