धुआंधार लड़ाई होगी,
सरे-आम लड़ाई होगी.
दिन हो या हो रात,
अब खुले-आम लड़ाई होगी.
तीरों से, भालों से,
बरछी और कटारों से.
ईंट से, पत्थर से,
सबसे पिटाई होगी.
धुआंधार लड़ाई होगी,
सरे-आम लड़ाई होगी.
खेत में, खलिहानों में,
बथानों में, मैदानों में.
पहाड़ो पे, दीवारों पे,
खुले-आम चढ़ाई होगी.
धुआंधार लड़ाई होगी,
सरे-आम लड़ाई होगी.
बच्चे हों या हों बूढें,
या हो नर और नारी.
रंक हो या राजा,
या हो शूद्र, या भिखारी.
मातृभूमि पे बलिदान की,
अब की सबकी बारी होगी.
धुआंधार लड़ाई होगी,
सरे-आम लड़ाई होगी.
परमीत सिंह धुरंधर