निकला था राजकुमार सा
अब मुसाफिर हो गया हूँ.
ए जिंदगी देख तेरे इस खेल में
एक मासूम मैं, कितना शातिर हो गया हूँ?
देखता था हर एक चेहरे में माँ और बहन ही
पर इनकी नियत और असलियत देख कर
मैं भी अब माहिर हो गया हूँ.
परमीत सिंह धुरंधर
निकला था राजकुमार सा
अब मुसाफिर हो गया हूँ.
ए जिंदगी देख तेरे इस खेल में
एक मासूम मैं, कितना शातिर हो गया हूँ?
देखता था हर एक चेहरे में माँ और बहन ही
पर इनकी नियत और असलियत देख कर
मैं भी अब माहिर हो गया हूँ.
परमीत सिंह धुरंधर
यूँ तो दोस्त कई हैं इस शहर में
पर तुम सा दुश्मन दूसरा नहीं मिलता।
कौन कहता है की तुम अकेले रह गए हो इस जीवन में?
मुझे अंधेरों में जलता कोई दूसरा चिराग नहीं दिखता।
शौक किसे नहीं तेरी इन लबों का?
मगर इन लबों पे वफ़ा भी तो नहीं मिलता।
दर्द किसको दिखायें इस जमाने में अपना?
जीवन में दूसरा पिता नहीं मिलता।
क्या किस्मत पाई है तुमने भी Crassa?
तुम सा शहर में कोई दूसरा नहीं मिलता।
कितना भी काम आ जाए हम किसी के
अब वो तारीफों का शब्द नहीं मिलता।
परमीत सिंह धुरंधर
वो जब हुस्न की एक मल्लिका बनीं
तो समझी की वो एक खुदा बनीं।
और तुरंत उनका फैसला आ गया
की वो अब से किसी और की बनीं।
परमीत सिंह धुरंधर
बादल बरसने से इंकार कर रहे हैं
हवाओं का रुख भी बदलने लगा है
फूल, कलियाँ, भौरें, सब मुख मोड़ने लगे हैं.
ए दिल ये किस मोड़ पे आ गया हूँ ?
चाँद, तारे, सब राहें बदलने लगे हैं.
किस से कहें हाले-दिल अपना?
हर चेहरा मुझे देख के नकाब पहनने लगा है.
बादल बरसने से इंकार करने लगे हैं.
जो सत्ता में हैं, वो मेरे अब साथी नहीं
जो विपक्ष में हैं, वो अब साथ आते नहीं।
वो जो अब तक मेरी हर परेशानी में
मेरे पास बैठे थे.
वो जो अब तक अपनी हर परेशानी में
मुझे अपने पास बुलाते थे.
मुझसे सम्मिलित हर समीकरण
वो अब बदलने लगे हैं.
बादल बरसने से इंकार करने लगे हैं.
नजरों का बस एक फेर है जिंदगी
वो जो मेरे थे कल तक
अब मुझसे कतराने लगे हैं.
वो जो मुझसे पूछ कर सवरते थे
वो जो मेरे कहने पे रंग बदलते थे
इस कदर बदल गया है राहे -सफर उनका
की भीड़ को मेरे खिलाफ उकसाने लगे हैं.
बादल बरसने से इंकार करने लगे हैं.
परमीत सिंह धुरंधर
वो लाख चाहकर भी छिटक न सकीं मेरी बाहों से
लोक-लज्जा, शर्म-हया, सबके टूटने का
यही तो एक मंजर था.
बंद आँखों में कितने चिराग जल उठें?
उनके मशाल बनने का यही तो एक मंजर था.
पिघल रही थी बरसो से जमी वो बर्फ
अलग – अलग इन धाराओं के मिलकर बहने का
यही तो एक मंजर था.
गली – गली से निकले,
भांति – भांति, अलग जाती के लोग
सत्ता के खिलाफ मिलकर लड़ने का
यही तो एक मंजर था.
तन्हा रहा सफर ए मंजिल तेरी चाहत में
तू मिली भी तो एक तन्हाई है तेरे इस आँगन में.
परमीत सिंह धुरंधर
दौलत की ऐसी बरसात
ना पहले देखि थी
ना शायद देख पाउँगा।
जियो – जियो हे अम्बानी
जुग – जग जियो हे अम्बानी।
कौन -कौन नहीं आया?
कौन – कौन नहीं नाचा?
तुम लग रहे थे इंद्रा
और नीता इंद्राणी।
जियो – जियो हे अम्बानी
जुग – जग जियो हे अम्बानी।
सोने की चिड़िया थी
कभी ये धरती अपनी भी
ऐसा पढ़ा और सूना था.
तुमने हकीकत में बदल दी
इतिहास की वो कहानी।
जियो – जियो हे अम्बानी
जुग – जग जियो हे अम्बानी।
परमीत सिंह धुरंधर
तेरी आँखों की कसम खाते हैं
तन्हाई में जी रहे पर तेरा नाम लेते हैं.
तुम मिलो कभी तो तुम्हे बता दें
वो शरारत थी बस तुम्हारे लिए.
सैकड़ों मिटे तो उनकी हैसियत बनी
ये शहर उनका हुआ, हमारी गरीबी रही.
परमीत सिंह धुरंधर
वो हमको बारूद, उनको संदूक दे गए
जन्नत में ७२ हूरों के साथ के लिए
मासूमों के हाथों में बन्दूक दे गए.
कहते हैं की वहाँ जवानी ढलती नहीं
और हूर बाहों से दूर छिटकती नहीं।
उस परुषार्थ-विहीन, माँ के दूध रहित
जवानी के लिए, माँ की गोद सुनी कर गए.
परमीत सिंह धुरंधर