दुनिया से हम लड़के


मिलती रहो हमसे यूँ ही बहाने करके
तुम्हे अपना बनाएंगे दुनिया से हम लड़के।
पिलाती रहो हमको बस यूँ ही अधरों से
तुम्हे अपना बनाएंगे दुनिया से हम लड़के।
जब संग ही हमारे हो, मुख पे ये भय कैसा?
तुम्हे उठा के ले जाएंगे हम तुम्हारे ही घर से.
यूँ ही नाम नहीं मेरा, जमाने में यहाँ
तुम भी बोल के देखना “पृथ्वीराज” एक बार आँगन में.

RSD

कहाँ हो मेरे पृथ्वीराज?


जिसकी जुल्फों में बंधने को पुष्प-पवन है बेकरार
वो संयोगिता पूछती है कहाँ हो मेरे पृथ्वीराज?
जिसके मुख के आभा से चंद्र हुआ है परास्त
वो संयोगिता पूछती है कहाँ हो मेरे पृथ्वीराज?
हार रही है दुखियारी, टूट रहा मन का हर आस
प्रीत परायी हो जाए, उसके पहले रख लो लाज.
कहाँ हो मेरे पृथ्वीराज? कहाँ हो मेरे पृथ्वीराज?

RSD

पृथ्वीराज चौहान


जिसके नजर के इन्तजार में
टूटा हैं दर्पण कई बार.
वो संजोगिता पूछ रही है
कहाँ हो मेरे पृथ्वीराज?

भारत के कण-कण पे अपने बाजुबल से
लिख रहे है पल-पल में नया इतिहास।
मगर मेरे दिल का हाल
कब समझोगे, मेरे चौहान?

RSD

मैं समर में महाकाल हूँ


मैं आर्यावर्त की शान हूँ
मैं सनातन की पहचान हूँ
मेरी आँखों की निकाल लो
जिव्हा को काट दो
ना मैं झुक सकता हूँ
ना मैं मिट ही सकता हूँ
क्यों की मैं तन- से-मन तक
आदि – से – अनंत तक
शुन्य – से – व्रह्माण्ड तक
मैं चौहान हूँ.
सत्रह बार तुम्हे छोड़ा है
मौत का भय मुझे क्या
जब मैंने तुम्हे जीवन दिया है
धरती से गगन तक
थलचर से नभचर तक
सूर्य से चंद्र तक
मैं समर में महाकाल हूँ.
मैं चौहान हूँ.

परमीत सिंह धुरंधर