ससुरा पी के हमके समझे आपन लुगाई राजा जी


ससुरा पी के हमके समझे आपन लुगाई राजा जी,
जल्दी पकड़ के राजधानी घरे आ जाई राजा जी.
कभी मांगें मीट, कभी मछली,
कभी कहेला बनाव मसाला वाला सब्जी,
घरी – घरी हमके दौरावे चुहानी राजा जी,
जल्दी पकड़ के राजधानी घरे आ जाई राजा जी.
ससुरा पी के हमके समझे आपन लुगाई राजा जी,
जल्दी पकड़ के राजधानी घरे आ जाई राजा जी.

 

परमीत सिंह धुरंधर

बीमार – सास


पायल छनकअता रात- रात भर,
बालम अइसन बा तहार ई प्यार।
टूट गइल शर्म के सारा दीवार,
बालम अइसन बा तहार ई प्यार।
मायका से आईल बा चिठ्ठी,
घरे बुलावाव तारी माई।
लिखदअ बालम तनी ई जवाब,
बीमार बारी सास हमार।
बालम अइसन बा तहार ई प्यार।
पायल छनकअता रात- रात भर,
बालम अइसन बा तहार ई प्यार।
टूट गइल शर्म के सारा दीवार,
बालम अइसन बा तहार ई प्यार।

परमीत सिंह धुरंधर

हुकूमत


चमक को छोड़ दो,
हल्दी पीसने पर ही हैं निखरती.
सास सीधी हो या हो गूंगी,
बहु को हमेसा है अखरती.
ये लड़ाई है हुकूमत की,
चाहे आँगन हो या हो दिल्ली.

परमीत सिंह धुरंधर

सैया हिमालय में चलके


जमाने की ये भीड़ सैया, ना भाये हमके।
चलअ बनावअ कुटिया, हिमालय में चलके।
छोड़ के अइनी हम माई के अंगना,
की बाँध के रखे तोहके अपना आंचरा।
की घरवा के ई खटपट सैया, ना भाये हमके।
चलअ बनावअ कुटिया, हिमालय में चलके।
की देहिया दुखाये ल, रात-दिन करके,
एगो तू रहतअ तअ ना कहती ई बढ़के।
पर सब केहूँ के कचर-कचर सैया, ना भाये हमके।
चलअ बनावअ कुटिया, हिमालय में चलके।

परमीत सिंह धुरंधर 

होली : मायका और ससुरा में


सोलहगो होली खेलनी मायका में,
मायका में,
पर अंग पे रंग चढ़ल ससुरा में.
पाहिले त आँखवा में आंसू आइल,
न अब माई-बहिनी भेटाई रे,
पर रोम-रोम पुलकित हो गइल,
जब नंदी मरलख पिचकारी से.
पिचकारी से.
गावं-गावं होली खेलनी मायका में,
मायका में,
पर अंग पे रंग चढ़ल ससुरा में.
दोपहर भइल फिर साँझ भइल,
सुने न कोई हमर गारी रे,
अरे चूड़ी टुटल, कंगन टुटल,
जब धइलख देवर अँकवारी में.
नाच-नाच होली खेलनी मायका में,
मायका में,
पर अंग पे रंग चढ़ल ससुरा में, परमीत