शंखनाद


आरम्भ तो करो युद्ध का, विस्तार हम करेंगे।
शंखनाद तो हो कहीं, प्रहार हम करेंगे।
डर ही हो अगर आधार जिंदगी का,
शान्ति भी लाचारी लगती है.
पग को तो उठाओ, राह हम बनेंगे।

परमीत सिंह धुरंधर

जंगे-जीत हासिल करेंगें


घरौंदें,
मिटटी के.
बनते ही हैं,
टूटने के लिए।
मगर इन्हे,
घर बंनाने के लिए।
आखिरी साँसों तक,
हम लड़ेंगे।
वो निकलें हैं,
बैठ के हाथी पे।
अपने मद में,
मतवाले।
हम नंगे पाँव ही,
ज़मीन पे खड़े होकर,
उनका सामना करेंगे।
कहता रहे जमाना,
हमें नादान,
नासमझ, नालायक।
हम अपनी,
अनुभवहीनता के बावजूद।
ये जंगे-जीत,
हासिल करेंगें।

परमीत सिंह धुरंधर

समर का शंखनाद


हर दिशा में गूंज रहा है समर का शंखनाद,
हवाओं में है बेचैनी, फिजाओं में है तनाव।
हर दिशा में गूंज रहा है समर का शंखनाद।
हर नजर लगी है बस समर की ही ओर,
की जल्दी ही होगी एक नयी भोर।
की कोई एक अकेला ही समर में इंद्रा होगा,
की समाप्त होगा जल्द ही वर्चस्व का ये विवाद।
हर दिशा में गूंज रहा है समर का शंखनाद।
हर दिशा में गूंज रहा है समर का शंखनाद।

परमीत सिंह धुरंधर