हमसे पूछिए शहर में नया क्या है?


हमसे पूछिए शहर में नया क्या है?
कहीं नजरें लड़ रहीं हैं,
कहीं मयखाना खुला है.’

हमसे पूछिए शहर में नया क्या है?
कोई पत्र लिख रहा है
कोई डाकिया बना है.

हमसे पूछिए शहर में नया क्या है?
इशारों – इशारों में संदेस जा रहे हैं
कहीं चुनर फंसी है, कहीं दुप्पटा उड़ा है.

हमसे पूछिए शहर में नया क्या है?
खुदा ने दे दी उनपे नजाकत
कहीं शमा जली है, कहीं अँधेरा हुआ है.

परमीत सिंह धुरंधर

जहाँ मिट्टी अब बस बुतों में है


शहर अब भी दुकानों में है
गावं अब भी खलिहानों में है.
तुम जिसे ढूंढते हो
वो दिल तो किताबों में है.

तुम जाने किन हसरतों के पीछे हो
अपना आशियाना लुटा के.
उन हसरतों का किनारा नहीं
वो तो खुद मझधारों में हैं.

बरसात की चंद बूंदों से
गावं में खुशबु बिखर जाती है.
ये शहर है जहाँ मिट्टी
अब बस बुतों में है.

परमीत सिंह धुरंधर

जब से तुम जवान हुई


जब से तुम जवान हुई,
सारा शहर परेशान हुआ.
मयखाने तक सुख गए,
जो तेरा दीदार हुआ.
बादलों ने मंडराना छोड़ा,
भौरों ने कलियों संग,
गुनगुनाना छोड़ा।
आँखों में उतर आएं हैं,
आसमान के सारे तारे।
जब से दुपट्टा तेरा,
कुछ ज्यादा ही ढलकने लगा.

 

परमीत सिंह धुरंधर

कुत्तों की एक भीड़ लग गयी शहर में


कुत्ते कुछ इस कदर भोकें,
बिल्लियाँ सहम गयी सारे सहर में.
और खेल भी देखो जनाब हड्डियों का,
उसने इस कदर फेंकी हड्डियां,
की कुत्तों की एक भीड़ लग गयी शहर में.

 

परमीत सिंह धुरंधर