हमसे पूछिए शहर में नया क्या है?
कहीं नजरें लड़ रहीं हैं,
कहीं मयखाना खुला है.’
हमसे पूछिए शहर में नया क्या है?
कोई पत्र लिख रहा है
कोई डाकिया बना है.
हमसे पूछिए शहर में नया क्या है?
इशारों – इशारों में संदेस जा रहे हैं
कहीं चुनर फंसी है, कहीं दुप्पटा उड़ा है.
हमसे पूछिए शहर में नया क्या है?
खुदा ने दे दी उनपे नजाकत
कहीं शमा जली है, कहीं अँधेरा हुआ है.
परमीत सिंह धुरंधर