लिखता हूँ तो लिख देता हूँ,
जिंदगी को हर तकाजे में.
ये ऐसा गुलिस्तां हैं दोस्तों,
जहाँ प्यास मिटती नहीं,
बस जिस्म के मिल जाने से.
ओठों को चख – चख के,
कितने मायूस हैं इस गलियारे में.
जो ठोकरों में भी मुस्कराए,
वैसे कमल को खिलता हूँ अपनी कलम से.
माँ सरस्वती का भक्त हूँ मैं,
मेरी आँखों को बस उनकी ही लालसा।
उनके चरणों को चुम लूँ,
तो मीट जाए मेरी हर तृष्णा।
ऐसे ही दुःस्वप्न ले कर,
भटक रहा हूँ जीवन के मरुस्थल में.
परमीत सिंह धुरंधर
This is just to explain that life is not only for success in professional life, in relationship. It is beyond that to understand the connection with the source of energy.
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