विशाल देह, विशाल कर्ण, विशाल नयन
हे गजानन, आपका अभिनन्दन।
महादेव के लाडले, गौरी – नंदन
हे गजानन, आपका अभिनन्दन।
आपके चरण-कमलों से बढ़कर नहीं कोई बंदन
हे गजानन, आपका अभिनन्दन।
सफल करो मेरे प्रभु अब मेरा भी जीवन
हे गजानन, आपका अभिनन्दन।
नित ध्यायु आपको, करूँ आपका ही श्रवण
हे गजानन, आपका अभिनन्दन।
मैं पापी, मुर्ख, अज्ञानी, जाऊं तो जाऊं किसके अब शरण
हे गजानन, आपका अभिनन्दन।
बस जाओ, हे प्रभु, अब मेरे ही आँगन
हे गजानन, आपका अभिनन्दन।
सुबह-शाम पखारूँ मैं आपके चरण
हे गजानन, आपका अभिनन्दन।
परमीत सिंह धुरंधर
Like this:
Like Loading...