राजपूत की गोरैया


दाना दूंगा, पानी दूंगा
थक जाती हो आने में
तो यहीं घोंषला बना दूंगा
कभी कभी नहीं
अब रोज -रोज मिलो गोरैया।

बैठा हूँ तुम्हारे लिए
राहें ताकता तुम्हारी ही
और कौन है जिसके लिए?
मोह करूँ इन साँसों की
अब इस राजपूत की बन जाओ गोरैया।

इस दुपहरी में तुम एक पुरवाई हो
वीरान से जीवन में तुम एक अंगराई हो
उषा की लाली ही क्या?
अगर तुम्हारी चहचहाअट न हो.
मेरे विरहा को अब मिटावो गोरैया।

Rifle Singh Dhurandhar

पथप्रदर्शक गोरैया


आवो गोरैया
खावो गोरैया
चाहको मेरी बगिया में
मुझको भी कुछ सुनावो गोरैया।

कैसी है ये दुनिया?
और कैसा ये आसमान?
रंग क्या हैं ये, जो है सुबहों -शाम?
मुझे भी ज़रा बतलाओ गोरैया।

तुम तो उड़ जाती हो अपनी चाह में
मैं बंधा हूँ यहाँ जाने किसकी आस में?
कभी मेरे भी दिल को
अपनी आदाओं से बहलावो गोरैया।

शहर -गावं तुमने देखा
डाल -डाल पे तुमने डेरा डाला
इस घनघोर वीरान में हो अगर कोई पथ
तो पथप्रदर्शक बनकर मुझे पथ दिखावो गोरैया।

Rifle Singh Dhurandhar