बिहार में लूट कर प्रेम में


इश्क़ अगर जामने में किसी ने किया है
तो सिर्फ बाबूसाहेब लोगों ने
आज का इश्क़ तो एक समझौता है.

एक वक्त था जब कहते थे
इश्क़ में बर्बाद हो जाओगे
आज तो बस इश्क़ में व्यापार होता है.
और ये व्यापार ही है
जिसके अंत में घाटे – फायदे का हिसाब होता है.

एक वक्त था
हम बिहार में लूट कर प्रेम में
कलकत्ता में जी लेते थे
किसी का नौकर बनकर
तो किसी के हाथगाड़ी में बंधकर।
आज तो घाटा ज्यादा हो प्रेम में तो
हत्या या आत्महत्या, इसका अंजाम होता है.

इश्क़ अगर जामने में किसी ने किया है
तो सिर्फ बाबूसाहेब लोगों ने
आज का इश्क़ तो एक समझौता है.

 

परमीत सिंह धुरंधर

 

 

इश्क़ बड़ा महँगा है दोस्तों – 2


धीरे – धीरे
ढो के ले गयी
मेरे घर का कोना – कोना।
हल्दी – धनिया, सिलवट – लोढ़ा
बाबू जी का गमछा,
और माई का बिछोना।
इश्क़ बड़ा महँगा है दोस्तों
जिसने इस बाबूसाहेब को
सड़क पे ला दिया।

गजब की शौक़ीन थी मेरी बाहों का
हाँ, जब मैं अमीर था.
जिसकी आँखों के एक – एक रंग पे
मैंने उसकी अंगों पे
दूध, दही, घी, बतासा
अदौरी – तिलोड़ी, पकोड़ी
आंटा, सतुआ, चिउरा
अरे अपने पूर्वजों के एक – एक
संचित धन का भोग लगा दिया।

 

परमीत सिंह धुरंधर

इश्क़ बड़ा महँगा है दोस्तों


उनकी आँखों ने मेरा हर रंग उतार दिया
चोली के एक – एक बटन पे
उसने मेरा एक – एक बिगहा ले लिया।
इश्क़ बड़ा महँगा है दोस्तों
जाने वो कैसे कहतें हैं?
की उन्होंने ने अपना इश्क़ पा लिया।

वो जाने चढ़ गयी किसकी डोली?
उसकी नसीब बनकर
जिसकी वक्षों के एक – एक स्पंदन पे
हमने खेत -खलिहान, बागान -बथान
गाय – बैल, भैंस – बकरी
नाद, खूंटा, भूंसा
अरे पगहा तक उसके नाम लिख दिया।

 

परमीत सिंह धुरंधर

मरुस्थल


रक्त की बून्द में
तपिश हो प्यास की.
बादल भी ना बरसें
उमड़ कर जिस धरती।
वैसे मरुस्थल में भी
मैं रखूंगा चाहत बस तेरी।

तू सावन बनती रहे
यूँ ही गैरों के आँगन की.
हर पतझड़ के बाद भी
मैं रखूंगा उम्मीदें एक बसंत की.

 

परमीत सिंह धुरंधर

औरत को कोई समझ न सका


वो शहर की हर एक गली में मचली
मगर उनका प्यास फिर भी ना मिट सका
अंत में उनकी फिर ये ही रह गयी शिकायत
उनके अंदर की औरत को कोई समझ न सका.

 

परमीत सिंह धुरंधर

वो चारपाई ही है मेरी


आज भी उनसे मोहब्बत का इरादा रखते हैं
हम इस शहर में अब भी अपना हिस्सा रखते हैं.
वो बेवफा हैं और उनको गुमान भी है इसका
मगर उनकी भी मज़बूरी है
वो चारपाई ही है मेरी
जिसपे वो अपने यार का तकिया रखते हैं.

 

परमीत सिंह धुरंधर

मैं प्रतिव्रता नहीं हूँ


मैं हूँ एक भारतीय नारी
संस्कारों से भरी
काजल लगाती हूँ आँखों में
और करवा चौथ का व्रत भी रखती हूँ
पर मैं प्रतिव्रता नहीं हूँ
मैं पतिव्रता तो नहीं हूँ.

पूजती हूँ पति को
अपने परमेश्वर मान कर
उनकी एक खांसी पे जगती हूँ रात भर
लम्बी उम्र को उनके
उपवास भी रखती हूँ
पर मैं प्रतिव्रता नहीं हूँ
मैं पतिव्रता तो नहीं हूँ.

हसने – खेलने की कोई
उम्र नहीं होती
जवानी में ही सिर्फ
अंगराई – अटखेली नहीं होती
सांझ ढले उनकी नींदे गहरी हो जाती हैं
लेकिन मैं अब भी चाँद बनकर
बादलों में छूप जाती हूँ.
पर मैं प्रतिव्रता नहीं हूँ
मैं पतिव्रता तो नहीं हूँ.

 

परमीत सिंह धुरंधर

 

मोदी :अविश्वास प्रस्ताव-2018 (part 2)


माँ
जमाना देखेगा
मेरे रंग को
जब मैं रंग दूंगा
तेरे आँचल को.

अभी तो बहुत पड़ाव
आने बाकी हैं
जहाँ पड़ेंगीं मुझको गालियाँ।
मगर हर पड़ाव पे
जमाना झुकेगा
तेरे चरणों में.

उन्हें धीरज इतना भी नहीं
की मेरे जाने का इंतज़ार कर लें.
वो जिन्हे सिर्फ सोने -जवाहरात
लगाने का शौक है अपने तन से.
वो मुझे गले लगाएं या ना लगाएं
उन्हें एक दिन लगाना होगा
तेरी माटी को अपने तन – मन से.

 

परमीत सिंह धुरंधर

मोदी :अविश्वास प्रस्ताव-2018


जो धरा को अब भी अपना धरोहर हमझते हैं
वो जान लें की अब सत्ता पे मोदी बैठें है.
आसान नहीं है उन्हें उठा देना
वो जो आसान पे सम्पूर्ण तपो बल से बैठें हैं.

 

परमीत सिंह धुरंधर

जिंदगी


रंग जिंदगी में कुछ भी हो
तन्हाई का न हो.
तकलीफ जिंदगी में कुछ भी
बेवफाई का ना हो.

महफ़िल में कोई आये मेरे या ना आये
इंकार तुमसे ना हो.
गले से मेरे कोई लगे या ना लगे
शिकवा तुमसे ना हो.

 

परमीत सिंह धुरंधर