जब धरा पे मैंने,
चलाई कुदाल,
तो धरती बोली,
पाँव तो सम्भाल,
मेरे लाल, परमीत।
Month: March 2014
साजिस
कभी वो हुस्न थी,
और मैं इश्क था
आज वो बेचैन हैं,
और मैं शांत सा.
कभी वो रात थी,
और मैं ख्वाब सा,
आज वो दरिया हैं,
और मैं सागर सा,
कि वक्त ने जब भी,
कि हैं मुझे तोड़ने कि साजिस,
मिट जाने से पहले,
मैं उठा हूँ परमीत लहरो सा.
परमीत और मेनका
वो रात भर मेरी बाँहों में,
रक्त का संचार बनी,
मेरे हृदय कि धड़कने,
मेरी साँसों कि रफ़्तार बनी.
इन काली-काली रातो में,
मेरे जीवन का आधार बनी.
उड़-उड़ के उनकी जुल्फे,
गिरती हैं मेरे मुखड़े पे,
आँचल ढाल कर उनके काँधे से,
लिपटा है मेरे सीने से,
मासूमियत से दूर,
वो मेरी मुस्कान बनी.
इन काली-काली रातो में,
मेरे जीवन का आधार बनी.
अधखुली पलकों से,
वो देखती हैं मेरे तन को,
अभी भी दबी,
अपने सरमोहया के बोझ से.
उनके योवन कि खामोसी,
मेरी जवानी कि चीत्कार बनी.
पल में वो दूर जाती,
पल में पास आ रही,
अपनी जुल्फो कि उलझन से,
खुद उलझती जा रही.
उनकी ये विवसता,
मेरा राजपूती अहंकार बनी.
न रोसनी कि चाहत,
न उची उड़ान कि,
लगता हैं प्यारा अब ये अंधकार,
उनकी जुल्फे मेरी पाश बनी,
लो टूट रहा मेरा ब्रह्मचर्य परमीत,
वो मेनका-अवतार बनी.
बैलों और भैंस म…
बैलों और भैंस में येही अंतर है कि भैंस घांस खुद चर लेती है और बैल को काट के, खल्ली मिला के खिलाना होता है, परमीत.
कुछ बैल सिर्फ म…
कुछ बैल सिर्फ मेलों में सजते है और वो बस नाद पे ही भातें हैं, और घर में दहेज़ लाने का काम करते है. वो कभी ना तो खेत में ही सज पाते है न ही खलिहान में. अब ये तो आप कि जावानी पे है कि आप कैसा बैल खरीदते हो, परमीत.
सर्वश्रेष्ठ-रिश्ते
मेरे बैलों कि जोड़ी बड़ी अनमोल है,
एक सीधा तो एक मुहजोड़ है.
बहते है दिन भर पछुआ में,
अरे ये तो बड़े बेजोड़ है.
देख के हल मेरे काँधे पे,
उछलने लगते है ये नाद पे.
अपने सींगों,
पे उखाड़ दे पहाड़ को,
ताकत में ये बेमिशाल हैं.
बहते हैं खेत में झूम -झूम के,
लौटते है घर को,
मिटटी उछाल-उछाल के,
मेरी जवानी के,
ये रिश्ते सर्वश्रेष्ठ हैं परमीत
गड़ासा प्यार में
लिए गड़ासा चल पड़ा हूँ प्यार में,
आज काट के लाऊंगा पूरी घांस रे,
फिर खाना मस्ती में मेरे बैलों,
लगाऊंगा हरियाली जब तुम्हारे नाद में.
इस गावं में या उस गावं में,
चाहे गुमेजी से या चंवर से,
पर लाऊंगा परमीत आज घांस मेरे बैलों,
फिर खाना मुँह डूबा के नाद में
साजन
कब तक मैं देखूं दर्पण को,
ए माँ कह दे बाबुल से,
अब मुझे पराया बना दें.
तू जो देती है यूँ रोज-रोज,
नयी-नयी मुझे चूड़ियाँ,
वो भी पूछती है रातों को,
कब बजेगी मेरी शहनाइयां.
कब तक मैं सोऊँ यूँ किवाड़ भिड़ा के,
ए माँ कह दे बाबुल से,
अब मुझे डोली में बिठा दें.
भाभी छेड़ती है,
घींच के चुनार मेरी,
सखिया पूछती है चिठ्ठी में,
कब मैं पता बदलूंगी.
कब तक मैं निकलूं, काजल लगा के,
ए माँ कह दे बाबुल से,
अब मुझे परमीत सा साजन दिला दें.
अभिमन्यु
काश तुम होते हमारे साथ पिता जी,
तो हम यूँ अकेले न होते।
इस मोड़ पे जिंदगी के,
यूँ तन्हा-तन्हा न होते।
अभिमन्यु बढ़ा है,
तुम्हारी शान में,
मैं रहूँ या न रहूँ,
कल इस मैदान में,
जग करता रहेगा,
तुम्हारा गुणगान पिता जी,
काश तुम होते हमारे साथ पिता जी।
गुलाब और परमीत
आज तो मेरे १४ साल के दोस्त गुलाब ने भी दोस्ती तोड़ दी. मैंने सोचा क्यों ना विदेशी धरती पर विदेशी कन्या को प्रेम-निवेदन किया जाय. आज तक मैंने जितने भी प्रेम-निवेदन कियें, उनमे मेरे दोस्त ने हमेशा साथ दिया चाहे जितनी भी जिल्लत हुई हो, लेकिन आज उसने साफ़ इनकार कर दिया. आखिर कब तक वो मेरा साथ दे या अब उसे मेरे दोस्ती में वैसा मज़ा नहीं मिलता. जैसे ही मै आज उससे मिला और अपना मकसद बोला पाहिले तो उसने मुझे हतोसाहित किया, फिर बात ना बनता देख बोला की अब उसमे धीरज नहीं की, वो और जिल्लत नहीं सहेगा. अरे भाई मेरे हाथ में आने पे उसकी किस्मत क्या हो जाती है. पैरों के नीछे कुचलना तो दूर कोई उसे छूता भी नहीं. उसने आखिर में एक सवाल पूछा की क्या अब तक किसी ने मेरे हाथ से उसे ग्रहण किया है. और उसने मुझे कहा की वो अब मेरा साथ नहीं दे सकता. मेरे साथ रहने पर उसका अर्थ, उसका प्रेम-प्रसंगता नष्ट हो जाती है. मैंने भी आज अपने दोस्त को अलविदा कह दिया. उसने सोचा की अब शायद मै कुछ नहीं करूँगा. उसने मुझसे कहा की बुरा नहीं मानना , ये तेरे भलाई के लिए कर रहा हूँ. मैंने कहा दोस्त मै आज बोलू भी तो कोई फायदा नहीं. परमित सिंह तो तुम्हारे बिना भी प्रेम-निवेदन कर सकते है, ये तो तुम थे जिसने कहा था १४ साल पहिले, की आज कल कोई प्रेम समझता नही, मनुष्य अब प्रेम के महत्व को समझता ही नहीं. जब लोगो ने तुम्हे छोड़ दिया था तब मैंने तुम्हारी महानता को दर्शाया. मेरी आवाज ही काफी है मेरे लिए. मै चल निकला अपनी राह. गुलाब ने भी वैसे ही हंसी बिखेरी जैसे आज तक उन सभी ने जो मेरी मदद लेने के बाद मुझे वेव्कुफ़ कह कर मुझ पर हँसते है. अपनी दबी हुई हंसी में उसने कहा, नहीं बदलेगा साला परमीत सिंह, मैंने सुना दर्द हुआ, लेकिन फिर सोचा हर किसी की चाहत ये ही है की मै बदल जाऊं और तब जब वो धोखा दे कार्य समझाने की कोशिस करते है की उन्होंने धोखा नहीं दिया. मै दो पल रुका और पलट कर बोला की बदलना उनकी आदत है जिनकी सुन्दरता गुलाब पर निर्भर होती है…………..परमीत