अरे सैयां हमार पागल
आ हम सैयां खातिर पागल।
विरहा में हमर जवानी
सौतन के उ बांधे छागल।
परमीत सिंह धुरंधर
अरे सैयां हमार पागल
आ हम सैयां खातिर पागल।
विरहा में हमर जवानी
सौतन के उ बांधे छागल।
परमीत सिंह धुरंधर
We can make powerful computers
We can go to the moon and the Jupiter
But we are lacking kindness
And the appreciation for our mother nature.
Parmit Singh Dhurandhar
I love two words
Difference and different
It’s like husband and wife
I never understand how different the other guy was
That my GF chose him for her life.
I hate two words
Love and pain
It’s like husband and wife
you invite one and partner also joins.
I worship two words
Mom and dad
It’s again like husband and wife
they keep fighting by saying “he is my son”
“he is my son”
I don’t understand why
As I have no quality and good sign.
I am always confused with two words
Husband and wife
You talk with one to know him/her in a better way
And you get all stories about the partner
In the end, you listen a sentance “It was the biggest mistake of life”.
Parmit Singh Dhurandhar
शहर बहुत खामोश है
रक्त का बहाव कमजोर है.
परमीत सिंह धुरंधर
मदहोशियों की रात थी
जब तुम मेरे साथ थी
साँसों का बहाव था
घोंसलों में पड़ाव था.
पंखों को समेटे
आँखों को मूंदे
रक्त के तीव्र प्रवाह
में मिल रहे थे अंग – अंग
जाने कैसा वो अभियान था.
परमीत सिंह धुरंधर
किसको मैं प्यार करूँ?
ये दिल तू ही बता
वो हर रात थोड़ी – थोड़ी
मुझसे दूर जा रही हैं.
कोई और भी तो नहीं है
जो मेरी नशों में ऐसा रास घोले
वो तो अब इन नशों में
उतरने से इंकार कर रही हैं.
परमीत सिंह धुरंधर
आज अभी इस रात को तुझे पाने की चाह है
जानता हूँ ये मुमकिन नहीं पर दिल को एक आस है.
परमीत सिंह धुरंधर
मगरूर जमाना क्या समझे खुशबु मेरी मिटटी की?
जहाँ धूल में फूल खिलते हैं बस पाके दो बूंदें पानी की.
मगरूर जमाना क्या समझे खुशबु मेरी मिटटी की?
एक बूढ़े ने बदल दी थी सनकी सियासत दिल्ली की.
परमीत सिंह धुरंधर
मैंने चाहा जिस समंदर को
उस समंदर की अपनी हैं गुस्ताखियाँ।
जिन लहरों पे मैंने बिखेर दिया पाने ख्वाब
वो ही लहरें डुबों गयीं मेरी किश्तियाँ।
मजधार में मुझे बाँध कर
साहिल पे बसा रहीं हैं गैरों की बस्तियाँ।
परमीत सिंह धुरंधर
जिसे खेत में लूट कर तुम नबाब बन गए
उससे पूछा क्या कभी?
उसकी आँखों में क्या दर्द दे गए?
एक चिड़िया
जिसने अभी सीखा नहीं था दाना चुगना
तुम दाने के बहाने जाल डालके
उसका आसमान ले गए.
कई रातों तक देखती थी जो ख्वाब
घोनषलॉन से निकल कर एक उड़ान भरने का
उसके पंखों को बाँध कर
तुम उसका वो सारा ख्वाब ले गए.
परमीत सिंह धुरंधर