इश्क़ में ईद


इश्क़ में ईद हम भी मना ले,
कभी कोई चाँद तो निकले।
होली में रंग तो सभी,
खेल लेते है चेहरा छुपाके।
इश्क़ में दिवाली हम भी मना ले,
कोई एक दिया तो जलाये आँगन में.

 

परमीत सिंह धुरंधर

आरजु – ए- वतन


धरती पे, आसमां पे,
आरजु – ए- वतन रखता हूँ.
चाहे जहाँ भी रहूँ,
भोजपुरी को अपनी माँ कहता हूँ.

 

परमीत सिंह धुरंधर

मैं घनघोर विरोधी हूँ


मैं घनघोर विरोधी हूँ,
चक्रवात सा.
मेरी प्रखरता,
है आज भी एक विवाद हाँ.
ना रोक सके न तोड़ सके,
ना मोड़ सके कोई.
इसलिए कहते हैं सभी की,
मेरा होगा बुरा अंजाम हाँ.

 

परमीत सिंह धुरंधर

जख्मों का समंदर


तेरा मुस्कराना,
मुझे जख्मों का समंदर दे गया.
फासले तो आ ही गए हैं दरमियाँ,
मगर निगाहों का असर रह गया.

 

परमीत सिंह धुरंधर

शिव -सा – धुरंधर


शिव-शंकर बोले हमसे,
तुम मेरे प्रिये हो.
फिर क्यों डरते हो इतना,
क्यों भय से बंधे हो?
ये आँखे है तुमपे सदा,
सर्वदा, तुम्ही इनको प्यारे हो.
धन की तमन्ना,
नारी की कामना।
ना रखो मन में,
ये ही है वेदना।
की तुम मेरा अंश हो,
तुम मेरा तेज हो.
फिर क्यों डरते हो इतना,
क्यों भय से बंधे हो?
भटकना है तुम्हे,
बहना है तुम्हे, हर पल में निरंतर-2।
ना कोई बाँध सकेगा,
ना कोई दल सकेगा।
बस तुम्ही हो केवल,
इस जग में शिव -सा – धुरंधर-2।
तुम ही रूद्र हो,
तुम ही मेरा जोत हो.
फिर क्यों डरते हो इतना,
क्यों भय से बंधे हो?

 

परमीत सिंह धुरंधर

चुनाव


मैंने लिखी जो कबिता वो तुम्हारे हुस्न पे थी,
उसने लिखी जो कबिता वो तुम्हारे जिस्म पे थी.
और, तुमने चुन लिया उसे ही,
जिसकी नजर तुम्हारे जिस्म पे थी.

 

परमीत सिंह धुरंधर

हुस्न वालों को बस छावं ढूंढते देखा है


मोहब्बत भले न मिली जिंदगी में,
नफरतों ने मुझे आगे बढ़ने का मुद्दा दिया है.
जमाना कर रहा है कसरते मुझे मिटाने की,
मेरी साँसों ने तो बस मुझे जिन्दा रखा है.
किसने कहा की हुस्न के आँचल में जन्नतों का द्वीप है,
हमने तो बस यहाँ साँसों को सिसकते देखा है.
रातों के अँधेरे में तो वफ़ा हर कोई निभा दें,
दिन की चिलचिलाती लू में,
हमने हुस्न वालों को बस छावं ढूंढते देखा है.

 

परमीत सिंह धुरंधर

हुस्न-इश्क़ और खंजर


खूबसूरत लम्हों में लपेट के जो खंजर चला दे,
वो हुस्न तेरा है.
बिना जुल्फों में सोएं जो ओठों का जाम चख ले,
वो इश्क़ है मेरा।
तुझे गुरुर है जिस योवन पे,
वो ढल जाएगा एक दिन सदा के लिए,
और मैं यूँ हैं चखता रहूँगा योवन का रस,
चाहे रौशनी मेरी आँखों की या आँखे मेरी,
मुद जाए सदा के लिए.

 

परमीत सिंह धुरंधर

खत्तरी और चोली


दो नैना खत्तरी के, खतरनाक है बड़े,
कितनो के चोली के बटन टूट गए.
जो पड़ जाए किसी पे, तो चाल बदल जाए,
कितनो के चुनर आसामन ले गए.
दो नैना खत्तरी के, खतरनाक है बड़े,
कितनो के चोली के बटन टूट गए.
लखनऊ से दिल्ली, हैदराबाद से शिकागो,
कितनो के झूलों में कई लाल झूल गए.
दो नैना खत्तरी के, खतरनाक है बड़े,
कितनो के चोली के बटन टूट गए.
लड़कियां हैं कितनी ही लाइन में खड़ी,
जैसे बिन जल के मछली के प्राण छूट रहे.
दो नैना खत्तरी के, खतरनाक है बड़े,
कितनो के चोली के बटन टूट गए.

 

परमीत सिंह धुरंधर

बुद्ध और बौद्ध


जो इंसान हार कर जीवन से,
बस मुस्करा रहा है अपनी बेबसी पे,
देखता है ये जमाना अचरज से की क्या ,
छुपाया है इसने अपने झोले में?
आँखे घुरतीं है, लाखो निगाहें तरेरती है,
अनगिनत खामोश सवाल जब घेरते हैं,
तो हारा इंसान भागने लगता है जमाने से,
और पीछे – पीछे उसके, एक भीड़ चलती है,
मन में बेचैनी लिए की क्या,
छुपाया है इसने अपने झोले में?
पहले उसका प्यार छिना, फिर गरीब किया,
भूख से बदहाल करके, सड़को पे छोड़ दिया,
और आज एक झोले के पीछे, आज इस जाामने ने,
अपनी औरत, दौलत, सब छोड़ दिया,
अब प्यास जिस्म की नहीं, दौलत की नहीं,
इस बात की है, की क्या छुपाया है इसने अपने झोले में?
हारा इंसान भागता रहा, झोला फट गया,
चिथड़े – चिथड़े हो कर उड़ गया,
पर भीड़ बढ़ती रही, उमड़ती रही,
मन का बोझ बढ़ कर पहाड़ हो गया,
की आखिर क्या छुपाया था इसने अपने झोले में?
अंत में फिर हारकर हारा इंसान बैठ गया,
और बुद्ध बन गया,
और ज़माने की भीड़ बौद्ध बन गयी,
मगर खोज अब भी जारी है,
की क्या छुपा था उस झोले में?

 

परमीत सिंह धुरंधर