इश्क़ के दास्ताँ


ए समंदर, मुझसे इश्क़ के दास्ताँ ना पूछ
हम राजपूतों की शान है, हम लुटा देतें है अपना सब कुछ.
वो दरिया हैं, बंध जाना नहीं है उन्हें कुबूल
और मैं बंध जाऊं, ऐसा नहीं मेरी नशों का खून.

O sea, do not ask me stories of love
We are Rajput, we are known to sacrifice everything we own for our love.
They are like streams, they don’t have to be tied
And I accept to be tied, that is not possible due to my lineage.

परमीत सिंह धुरंधर 

गर्व


सागर की लहरे उछलती रहीं,
नौका मेरी डुबाती रहीं।
किनारों को मेरे डूबा के,
मुझे भटकाती रहीं।
ये सच है की,
मैं कुछ पा न सका जीवन में।
पर धुरंधर को राजपूत होने,
का गर्व कराती रहीं।

घास की रोटी


पकाया है तुमने तो,
घास की ये रोटी नही.
अपने हाथो से खिला दो,
फिर ऐसा जीवन नहीं.
कष्ट क्या है धुरंधर राणा को,
जब तक तुम्हारे नयनो में हूँ.
बाहों में सुलो लो अपने,
फिर ऐसी कोई महल नहीं.

राणा


राणा ने संग्राम किया,
न कभी आराम किया।
एक चेतक के साथ पे,
मेवाड़ को आजाद किया.
हल्दीघाटी की वो ऐसी लड़ाई,
हाथी पे बैठे,
अकबर तक भाला थी पहुंचाई।
राणा ने संग्राम किया,
न कभी आराम किया।
राजपुताना के शान पे,
धुरंधर जीवन को,
कुर्बान किया।

राजपूतों की परंपरा


हम राजपूतों की ये परंपरा है,
जीवन से जयादा जमीन की चाहत है.
बंजर हो या उर्वर हो,
तन-मन को उसकी गोद में ही राहत है.
हम राजपूतों की ये परंपरा है,
दोस्तों से जयादा दुश्मनों में शोहरत है,
मारते हैं-मरते हैं,
जंग में मिले जख्मों से ही मोहब्बत है.
हम राजपूतों की ये परंपरा है,
जो समर्पित कर दे वो ही महबूबा है,
सजाते हैं-सवारतें हैं, परमीत
उसकी बाहों में ही फिर जन्नत है.

शंखनाद


जिस दिन समर में मैं कूदा दोस्तों,
सूरज प्रखर हुआ और,
बादल छट गये दोस्तों।
दुश्मनों कि निगाहें, है मुझ पे गड़ीं,
और मेरी नज़रों ने भी निशाना है साधा दोस्तों।
रक्त कि बूंदें थिरकने लगी हैं तन पे,
और जख्मों ने किया मेरा चुम्बन दोस्तों।
मेरा अंत ही है उनका इति श्री,
और उनका अंत ही मेरा जीवन दोस्तों।
खेलें हैं वो भी आँचल में कितने,
खेला हूँ मैं भी अपनी माँ के गोद में,
शीश कटेगा अब मेरा या,
फिर होगा परमीत मेरा शंखनाद दोस्तों।