जब सिंह करता है गर्जना,
तो जग करता है भर्त्स्ना,
तो क्या सिंह अपनी चाल बदल ले?
तो क्या सिंह अपना राज छोड़ दे?
सिंह को जरुरत नहीं, सियारों के संख्या की,
सिंह को चाहत नहीं, कुत्तों के भीड़ की,
अकेला है सिंह वन में,
तो क्या लड़ना छोड़ दे?
बूढ़ा है सिंह तन से,
तो क्या भिड़ना छोड़ दे ?
सिंह की हुंकार वही,
ललकार वही,
एक दिन होगी सिंह की,
जयजयकार यहीं,
एक दिन होगा सिंह का,
साम्राज्य यहीं।
परमीत सिंह धुरंधर