दो जून को कहते हैं मुश्किल से, पर मुस्करा कर मिलते हैं,
ये बस्ती ही कुछ ऐसी है, जहाँ सब इठला कर चलते हैं.
परमीत सिंह धुरंधर
दो जून को कहते हैं मुश्किल से, पर मुस्करा कर मिलते हैं,
ये बस्ती ही कुछ ऐसी है, जहाँ सब इठला कर चलते हैं.
परमीत सिंह धुरंधर