मैं तुम्हारे लिए,
आसमाँ के आंसू लाया हूँ,
और,
सरहद पर के कुछ गोलियाँ लाया हूँ.
सीने पे मेरे जो जख्म हैं,
उन्हें अब तक रख के जिन्दा,
लाया हूँ.
मैंने राते काटी हैं,
बस पानी पी – पी के.
और भूख को जिस्म में,
छुपा के लाया हूँ.
दाल में मिले कंकड़ों को सहेजा है,
आज तक तुम्हारे लिए.
और खेत हुए दुश्मनों की,
लंबी सूचि लाया हूँ.
सरकार के दिए वेतन,
में से कुछ नहीं बचा पाया तुम्हारे लिए.
दुःख है, मगर इसके सिवा,
मैं तुम्हारे लिए, सेना की नौकरी से,
सब कुछ लाया हूँ.
This is written for Indian army man from BSF who recently claimed that his officers are not giving him good food. Its painful for me to see the bad treatment our army mans are facing.
परमीत सिंह धुरंधर