दरिया का सफर देखिये
समंदर के इश्क़ में
राहें बदल – बदल कर मचली
मगर मजिल बस एक है.
किनारें टूटते हैं,
डूबते हैं, बिखरते हैं
मगर साथ-साथ चलते हैं
इस सफर में
इनका साथ अटल है.
परिंदों का सफर देखिये
आसमान के इश्क़ में
छोड़कर डाल, घोंसला, दाना-पानी
निकल पड़ते हैं उषा के आगमन पे.
हारते, उड़ते, प्यासे
संध्या पे लौट आते हैं
मगर अगली सुबह फिर
से वही चाहत, वो ही उड़ान
क्योंकि उनका उत्साह अटल है.
फूलों का सफर देखिये
उषा के इश्क़ में
खिलती में हर सुबह
उषा के चुम्बन से.
टूटती हैं, बिखरती हैं
काँटों से उलझ -उलझ कर
बदरंग हो जाती हैं.
मगर सुबह फिर नई कलि खिलती है
इनका विश्वास अटल हैं.
परमीत सिंह धुरंधर