यूँ ही नहीं मुझे घमंड
अपनी जवानी का.
इस जवानी को सजाया है
बहनों ने अपनी राखी से.
यूँ ही नहीं मेरे चेहरे पे दर्प
राजपूत होने का.
इस विरासत को पाया है
मैंने अपने पिता से.
जिन्हे लगता है की मैं
टेढ़ा हूँ, उन्हें क्या पता?
घी का लड्डू टेढ़ा ही सही,
माँ ने गढ़ा है बड़े जतन से.
परमीत सिंह धुरंधर