टूटे हैं सारे ख्वाब इनके
बनके आँसू
छलक -छलक के.
जाने कैसे ज़िंदा हैं ये
जीवन में इतना भटक – भटक के.
कौन तोड़ेगा इनकी बेड़िया
एक तेरे सिवा
गरीबों की सुन ले ए दाता,
इनका कोई नहीं, तू विधाता।
इनकी आँखों के आगे
रहता है बस अँधेरा।
गरीबों की सुन ले ए दाता,
इनका कोई नहीं, तू विधाता।
परमीत सिंह धुरंधर