जुल्फों का तुम्हारे जब घना होगा साया
कहाँ तुम्हे याद होगा पिता की ये काया?
आँखों में शर्म और मुख पे होगी जब चंद्र की छाया
कहाँ तुम्हे याद होगा पिता की ये काया?
दो ही पलों का, बस यह मोह -माया
कहाँ तुम्हे याद होगा पिता की ये काया?
Rifle Singh Dhurandhar