सैया हिमालय में चलके


जमाने की ये भीड़ सैया, ना भाये हमके।
चलअ बनावअ कुटिया, हिमालय में चलके।
छोड़ के अइनी हम माई के अंगना,
की बाँध के रखे तोहके अपना आंचरा।
की घरवा के ई खटपट सैया, ना भाये हमके।
चलअ बनावअ कुटिया, हिमालय में चलके।
की देहिया दुखाये ल, रात-दिन करके,
एगो तू रहतअ तअ ना कहती ई बढ़के।
पर सब केहूँ के कचर-कचर सैया, ना भाये हमके।
चलअ बनावअ कुटिया, हिमालय में चलके।

परमीत सिंह धुरंधर 

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