हुकूमत


चमक को छोड़ दो,
हल्दी पीसने पर ही हैं निखरती.
सास सीधी हो या हो गूंगी,
बहु को हमेसा है अखरती.
ये लड़ाई है हुकूमत की,
चाहे आँगन हो या हो दिल्ली.

परमीत सिंह धुरंधर

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