किसी नजर की तलाश ही हैं जिंदगी का भटकाव
ढल जाती है जिंदगी फिर बिना किसी पड़ाव।
रुत तो कई आयी पर रहा मुसाफिर का वो ही हाल
नीचे छाले, ऊपर धुप, ना छावं ना कोई आराम।
राहें तंग, कंकर -पत्थर सी, मंजिल भी रंगहीन-उदास
धैर्य, प्रार्थना, प्रयास से ही संभव उत्कर्ष -उत्थान।
Rifle Singh Dhurandhar