वो इतने करीब से निकल गई,
अंजान बनके।
मोहब्बत थी, बरना चुनर उड़ा लेते,
हैवान बनके।
अब इशारों -इशारों में रह गई जिंदगी,
सुखी, उदास, गुलाब की पंखुड़ियों सी,
किताबों में बंध के.
परमीत सिंह धुरंधर
वो इतने करीब से निकल गई,
अंजान बनके।
मोहब्बत थी, बरना चुनर उड़ा लेते,
हैवान बनके।
अब इशारों -इशारों में रह गई जिंदगी,
सुखी, उदास, गुलाब की पंखुड़ियों सी,
किताबों में बंध के.
परमीत सिंह धुरंधर