मैं तराशा गया हूँ इस कदर दर्द में
ना कोई ख्वाब है ना कोई आशा मन में.
पंख तो फड़फड़ाते हैं हर घड़ी ही
पर ना आसमा है ना ही उड़ान नभ में.
फूल खिले हैं काँटों में, या कांटें ही साथ हैं
जिन्दी ऐसी उलझी, कुछ भी नहीं रहा बस में.
Rifle Singh Dhurandhar
मैं तराशा गया हूँ इस कदर दर्द में
ना कोई ख्वाब है ना कोई आशा मन में.
पंख तो फड़फड़ाते हैं हर घड़ी ही
पर ना आसमा है ना ही उड़ान नभ में.
फूल खिले हैं काँटों में, या कांटें ही साथ हैं
जिन्दी ऐसी उलझी, कुछ भी नहीं रहा बस में.
Rifle Singh Dhurandhar
दो नैनों के भवर में सारा जग डूबा है
हे जगत के स्वामी तुम्हारा भक्त डूबा है.
आधा पहर ढल गया और सागर अथाह है
हे जगत के स्वामी तुम्हारा भक्त डूबा है.
सम्पूर्ण बल क्षीण हुआ, ग्रीवा तक अब नीर है
अंत समय में स्वामी अब तुम्हारा ही सहारा है.
Rifle Singh Dhurandhar
मेरे मौला मैं थक गयी हूँ राहत के इंतजार में
कोई तो एक पल लिख दो, चैन मिले इस प्यार में.
आँखों में अश्क, और बेचैनी है रातो को
कब तक बैठूं यूँ खोल के किवाड़ मैं?
बेताब है टूटने को चूड़ियाँ और खनकने को पायल
दर्पण भी उल्हना मारे देख के मुझे श्रृंगार में.
अनाड़ी जाने बैठा है किस सौतन के ख्वाब में?
और पुरवाई मैं झेल रही विरहा की इस आग में.
Rifle Singh Dhurandhar
ना भींगा करों ऐसे बरसात में
तड़प उठता है Crassa ऐसी रात में.
तुमको तो मिल गए हैं साथी कई
रह गया मैं ही अकेला इस राह में.
कैसे सम्भालूं एक बार बता दे मुझे?
ज़िंदा हूँ मैं बस इसी एक आस में.
कैसे उठाऊं ये गम, ए दिल बता?
हर रात निकालता है वही एक चाँद रे.
रह गया एक राजपूत नाकाम हो के
इश्क़ ने ऐसे जलाया आग में.
ऐसे ना लड़ा मुझसे अँखियाँ गोरी
बदनाम हूँ शहर में किसी के नाम से.
Rifle Singh Dhurdhar
ना शहर मेरा, ना राहें मेरी
ए जिंदगी, कैसे सम्भालूं तुझे?
ना चाँद मेरा, ना तारें मेरे
ए जिंदगी, कैसे सजाऊँ तुझे?
पुकारूँ किसे, बताऊं किसे?
जो दर्द हैं दिल में मेरे।
ना बाग़ मेरा, ना बहारें मेरी
ए जिंदगी, कैसे बहलाऊँ तुझे।
भटकना ही है किस्मत मेरी
भटकना ही है मंजिल मेरी।
ना सुबहा मेरी, ना रातें मेरी
ए जिंदगी, कैसे ठहराऊँ तुझे।
सावन में हूँ एक पतझड़ सा मैं
राहों में हूँ सबके एक कंकर सा मैं.
ना साथी कोई, ना साथ कोई,
ए जिंदगी, किसे सुनाऊँ तुझे?
Rifle Singh Dhurandhar
जिंदगी जहाँ पे दर्द बन जाए
वहीँ से शिव का नाम लीजिये।
अगर कोई न हो संग, राह में तुम्हारे
तो कण-कण से फिर प्यार कीजिये।
राम को मिला था बनवास यहीं पे
तो आप भी कंदराओं में निवास कीजिये।
माना की अँधेरा छाया हुआ हैं
तो दीप से द्वार का श्रृंगार कीजिये।
जिंदगी नहीं है अधूरी कभी भी
तो ना अपहरण, ना बलात्कार कीजिये।
माना की किस्मत में अमृत-तारा नहीं
तो फिर शिव सा ही विषपान कीजिये।
Rifle Singh Dhurandhar
वो भी क्या दिन थे?
पिता के साथ में
हम थे हाँ लाडले
आँखों के ख्वाब थे.
जो भी माँग लिया
वो ही था मिल जाता
वो थे आसमान
और हम चाँद थे.
भाग्या प्रबल था
और हम भी प्रबल थे
वो कृष्णा थे हमारे
हम प्रखर थे उनके छाँव में.
Rifle Singh Dhurandhar
हर – हर, हर -हर, शिवशंकर
महादेव, बम – बम.
कैलास से उतरो, की अनाथ से हैं हम.
भटक रहें हैं दर -दर
आ गए प्राणों पे भी लाले
तुम्ही बताओ पिता, अब किसको पुकारे हम?
भागीरथ को भय नहीं
हाँ, अपनी हार का
पर कब तक उठाएंगे हम माथे पे ये कलंक?
पीड़ा मेरी अब तो
पहाड़ सी हो गयी
अब तो खोल दो प्रभु अपने ये नयन.
Rifle Singh Dhurandhar
कटती नहीं हैं रातें पिया परदेश में आके
एक रात तो बिता लो संग खाट लगाके।
किससे करूँ मन की बातें, किसके संग मनुहार?
कोई दर्द फिर जगा दो, सीने से हमको लगाके।
Rifle Singh Dhurandhar
देहिया गुलाबी करके
नयना शराबी करके
बालाम परदेशी हो गए.
मनवा के गाँठ खोल के
चिठ्ठी – आ – पाती पढ़ के
बालाम परदेशी हो गए.
अंग – अंग पे निशानी दे के
चूल्हा-चुहानी दे के
बालाम परदेशी हो गए.
मुझको बेशर्म करके
लाली और मेहँदी हर के
बालाम परदेशी हो गए.
मुझसे छुड़ा के मायका
मुझको दिला के चूड़ियाँ
बालाम परदेशी हो गए.
करवट मैं फेरूं रात भर
सुनकर देवरानी की चुहल
बालाम परदेशी हो गए.
Rifle Singh Dhurandhar