हमके दर्पण दिखा के बोले मोरे सवारिया,
आज रात को काटूंगा, आके ये चमचम से गलिया।
मैं शरमाई, सकुचाई, मृग सी रह गई कपकपा के,
पास आके रात में सब भूल गए सवारिया।
परमीत सिंह धुरंधर
हमके दर्पण दिखा के बोले मोरे सवारिया,
आज रात को काटूंगा, आके ये चमचम से गलिया।
मैं शरमाई, सकुचाई, मृग सी रह गई कपकपा के,
पास आके रात में सब भूल गए सवारिया।
परमीत सिंह धुरंधर