जो दरिया अपना अंदाज बदल ले
तो सागर प्यासा रह जाएगा।
जो भौंरा गर न बहके
तो कलियों का ख्वाब, ख्वाब रह जाएगा।
जिंदगी का ये फलसफा है
कोई, किसी के काम नहीं आएगा।
किस रब से माँगूँ की लौटा दे वो बचपन?
झूले तो बहुत हैं, वो गोद अब नहीं मिल पायेगा।
कितना दर्द है जिंदगी में, किसे सुनाऊँ बैठ कर
कौन है जो पिता बनकर मन को बहलाएगा?
सोचा नहीं था यादें इतना रुलायेंगी
तुम बिन जिंदगी, कृष्ण-बिन-द्वारका सा सूना रह जाएगा।
परमीत सिंह धुरंधर