मोहब्बत मुझे होती नहीं
और शरारत उन्हें आती नहीं
पर दिल हैं दुआओं में मेरा
की बेगम खिलाना मुझे छोड़ती नहीं।
कभी लड़ कर, कभी रो-रोकर
कभी सज-संवर कर, इठलाकर
थाली परोसना वो भूलती नहीं।
सच्ची मित्र, सच्ची सखा वो ही है
जो हर दिन गाली देने पर भी
मेरे लिए मछली तलना
चूल्हे पे गर्मी में भी, भूलती नहीं।
तो खिलाओ, पिलाओ
अपनी बेगम को दोस्तों
जैसे खिलाते -पिलाते हो
दूसरों की बेगम को दोस्तों।
Rifle Singh Dhurandhar