वेणी


मेरे इश्क़ को तेरा ख़्वाब मिले,
तो मैं रात भर यूँ ही जलता रहूँ।
तू चाँद बन कर मुझसे अगर दूर भी रहे,
तो मैं चकोर बनकर, तरसता हुआ,
भी जीवन को जीता रहूँ।
मेरे उपवन के फूलों से,
तू जो अपनी वेणी को गुंथे।
तो मैं काँटों को यूँ ही जीवन भर,
अपने श्रम से सींचता रहूँ।

परमीत सिंह धुरंधर

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