अधरों पे मुस्कान लिए,
वक्षों पे गुमान लिए.
वेणी उसके नितम्बों पे,
सम्मोहन के बाण लिए.
आँखों में सागर की लहरें,
मुख-मंडल पे अभिमान लिए.
पतली कमर पे यौवन उसके,
हिमालय का भार लिए.
चंचल है वो हिरणी सी,
मादकता का भण्डार लिए.
बलखाती है, लहराती है,
जाने ह्रदय में किसका नाम लिए?
परमीत सिंह धुरंधर