सोचता हूँ बहुत
जब भी वृक्ष को देखता हूँ
क्यों इसकी शाखाओं पे कांटे और फूल दोंनो हैं?
टटोलता हूँ बहुत
अपने अंतर्मन को
क्यों मैं उम्र के साथ दोराहे पे खड़ा हूँ?
हर नया रिश्ता बनाने के बाद
धड़कने मायूस और उदास
क्यों उषा से ज्यादा निशा में चमक है?
जब भी उसे बाहर में सुनता हूँ
भ्रमिक हो जाता हूँ
पतिव्रता के खिलाफ खड़ी
दुनिया की औरतों को नयी रौशनी देती
वो क्यों अपनी बेटी को सावित्री का पाठ पढ़ाती है?
परमीत सिंह धुरंधर