जो धुप में छाव बन कर
जो दर्द में माँ बनकर
सींचती रहे मुझे।
जो जग में पिता बन कर
युद्ध में गुरु बनकर
शिक्षित करती रहे मुझे।
जो सुख में प्रेयसी बन कर
जो दुःख में मित्र बन कर
समेटती रहे मुझे।
परमीत सिंह धुरंधर
जो धुप में छाव बन कर
जो दर्द में माँ बनकर
सींचती रहे मुझे।
जो जग में पिता बन कर
युद्ध में गुरु बनकर
शिक्षित करती रहे मुझे।
जो सुख में प्रेयसी बन कर
जो दुःख में मित्र बन कर
समेटती रहे मुझे।
परमीत सिंह धुरंधर