मुसाफिर हैं जो तन्हाई के उनका शौक भी तन्हाई है
जो छू के बैठें हैं तुझे, उनकी चाह में नहीं अब कोई अंगराई है.
जिस्म की ख्वाइसे दिल की ख्वाइशों से जुदा है क्या
ये जिसे तुम कह रहे हो मोहब्बत, वासना से जुदा ही क्या?
मेरी जिंदगी ही क्या जिसमे तेरा कोई जिक्र नहीं
वसल न सही, ना सही, तुझसे कोई हिज्र नहीं।
वो आँखों से इज़ाज़त लेने का दौर कहाँ
जब हम निगाहों से रोटी बदल लेते थे
वो मोहब्बत का दौर कहाँ
जहाँ बिना वसल के रात गुज्जार लेते थे.
ना पूछ की कैसे गुजरी है रात
ये पूछ की कैसे गुजारी है रात.
वो जो कहते थे हंस -हंस के हर बात
अब बिना कहे काट लेते हैं कई-कई रात.
साकी तेरा मुस्कराना गेम इलाज़ है मेरा
ये बस शराब नहीं दवा- ए -फ़िराक है मेरा।
सुकून मिला न मुझको शबे-वसल के बाद
कुछ ऐसे टूटा हूँ मैं तुम्हारे हिज़्र के बाद.
मोहब्बत में ताक्काबुर उनका अंदाज है
इश्क़ की मानिल कुछ नहीं बस गेम-फ़िराक़ है.
मंजिल तक आते -आते हर कारवां छूट गया
हर किसी के नसीब में कहाँ ये मुकाम है.
साकी पिला कुछ ऐसे की मयकदा घर बन जाए
वसल तो मुमकिन नहीं जख़्म भर जाए
कई रातों से आँखों को नींद मय्यसर नहीं
तू बस मुस्करा दे की कोई ख्वाब मिल जाए.
खुदा जानता है काफिर वो नहीं जिसने छोड़ दी इबादत तेरे हिज़्र के बाद
काफिर वो है जो मांगता है जन्नत और उसकी ७२ हूरें तुझसे वसल के बाद.
RSD