जब – जब कोयलिया कुहके बाग़ में
मन में हुक उठे ला.
दू गो हमार नैना राजा जी
विरह में पोखर पे सांझ ढले ला.
छोड़ दी शहर के कमाई
चारपाई भी चूल्हा के आग लागे ला.
परमीत सिंह धुरंधर
जब – जब कोयलिया कुहके बाग़ में
मन में हुक उठे ला.
दू गो हमार नैना राजा जी
विरह में पोखर पे सांझ ढले ला.
छोड़ दी शहर के कमाई
चारपाई भी चूल्हा के आग लागे ला.
परमीत सिंह धुरंधर